ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ

ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियाँ॥
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय।
थाय मात गोद लेत दशरथ की रनियाँ॥

पहला अंतरा:
अंचल रज अंग झारि, विविध भाँति सो दुलारि।
तन मन धन वारि वारि कहत मुदु बचनियाँ॥

दूसरा अंतरा:
विदुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर मधुर।
सुभग नासिका में चार, लटकत लटकनियाँ॥

तीसरा अंतरा:
तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद।
रघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियाँ॥

"अभी सब्सक्राइब करें और भजन के बोल (Lyrics) सीधे अपने मोबाइल पर पाएं!