श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्। नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुख, कर कञ्ज पद कञ्जारुणम्॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरज सुन्दरम्। पटपीत मानहुं तड़ित रुचि, सुचि नौमि
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्। नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुख, कर कञ्ज पद कञ्जारुणम्॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरज सुन्दरम्। पटपीत मानहुं तड़ित रुचि, सुचि नौमि