सकल हंस में राम विराजे, राम बिना कोई धाम नहीं |
सब भरमंड में ज्योत का वासा, राम को सुमिरो दूजा नहीं ||
तीन गुण पर तेज हमारा, पांच तत्व पर ज्योत जले |
जिनका उजाला चौदह लोक में, सुरत डोर आकाश चढ़े ||
सकल हंस में राम विराजे…
नाभी कमल से परख लेना, ह्रदय कमल बीच फिरे मणि |
अनहद बाजा बाजे शहर में, ब्रह्मंड पर आवाज़ हुई ||
सकल हंस में राम विराजे…
हीरा जो मोती लाल जवाहरत, प्रेम पदारथ परखो यहीं |
सांचा मोती सुमर लेना, राम धणी से म्हारी डोर लगी ||
सकल हंस में राम विराजे…
गुरु जन होय तो हेरी लो घट में, बाहर शहर में भटको मती |
गुरु परताप नानक साह के वरणे, भीतर बोले कोई दूजो नहीं ||
सकल हंस में राम विराजे, राम बिना कोई धाम नहीं |
सब भरमंड में ज्योत का वासा, राम को सुमिरो दूजा नहीं ||
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