कथा विसर्जन होत है , सुनहु वीर हनुमान ।निज आसन को जाइके , कृपा सिन्धु भगवान ।।
हरिसन कहियो दण्डवत , तुन्हहिं कहो कर जोर । बार – बार रघुनायकहि , सुरति करायेहु मोर ।।
अस कह गवने बालि सुत , फिर आये हनुमान । तातु प्रीति प्रभुसन कहि , मगन भये भगवान ।।
जय जय राजाराम की , जय लक्ष्मण बलबान । जय कपीश सुग्रीव की , जय अंगद हनुमान ।।
जय बोलो काग भुसंड की , जय गुरू उमा महेश । जय मुनि भारद्वाज की जय तुलसी अवधेश ।।
भव भेजश रघुनाथ यश , सुनहिं जे नर अरुरारि | तिनके सकल मनोरथ , सिद्ध करहिं त्रिपुरारि ।।
क्या छवि वरणो आज की , भले बने हो नाथ । तुलसी मस्तक जब नवे, धनुष बाण लो हाथ ।।
कित् मुरली कित् चिंद्रका , कित गुपियन के साथ । अपने जन के कारणे , नाथ भये रघुनाथ ।।
ऐसे करुणा सिद्ध को , तो न भजे मन काय । ते नर पशु के तुल्य है , देह मनुज की नाय ।।
एक घडी आधी घडी , आधी ते पुनि आध । तुलसी संगत साधु की , इरय कोटि अपराध ।।
रामकृष्ण सब कोई कहे , ठग ठाकुर अरु चोर । बिना प्रेम रीझे नहीं , तुलसी अवध किशोर ।।
रामायण बैकुण्ठ गई , सुर गये निज धाम । रामचन्द्र के पद कमल , जाय गहे हनुमान ।।
राम लक्ष्मण , जानकी , भरत शत्रुघ्न भाय । कथा विसर्जन होत है सब कह सीस नवाय ।।
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