क्या लेके आया बंदे क्या लेके जायेगा
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला
इस जगत सराये में, मुसाफिर रैना दो दिन का
झूंठा करे गुमान, मुरख इस धन और यौवन का
नहीं हे भरोसा पल का, गफलत में खेला
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला…
वो कहाँ गऐ बलवान, तीन पग धरती तोलणियाँ
जिनकी पड़ती धाक, नहि कोई शामा बोलणियाँ
निर्भय डोलणियाँ वो तो, गया है अकेला
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला….
कोई छोड़ सक्या भाई, या माया गिणी गिणाई ने
अरे गढ कोटा की निव छोडग्या, चिणी चिणाई ने
चिणी और चिणाई रह गई, चाल्या नही देहला
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला…
क्या लेके आया बंदे क्या लेके जायेगा
दो दिन की जिंदगी है दो दिन का मेला
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