चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़,
तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक करत रघुवीर…
चित्रकूट के घाट घाट पर भिजनी जोवे बाट,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
असन नहीं है चया कहाँ से बिछाऊँ,
अंखियन में पियारे बैठ कैसे दिखाऊँ,
कहाँ से बिछाऊँ टूटी खाट,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
भोजन नहीं है चया क्या मैं खिलाऊँ,
बासी है पियारे रोटी क्या मैं दिखाऊँ,
अइसे मैं करूँ पियार का पाठ,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
नेहा नहीं है चया क्या मैं सजाऊँ,
मन मैं ये विराग क्या मैं बताऊँ,
अइसे ही बढ़ाऊँ प्रेम का ठाठ,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
खोया रहा च्या क्या मैं सुनाऊँ,
सामने जो रघुवर बैठ क्या मैं बताऊँ,
अइसे ही अधूरा छोड़ा थाट,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
चित्रकूट के घाट घाट पर भिजनी जोवे बाट,
राम पिर घर आना, राम मेरे घर आना…
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