तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे बलिहार
तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू । तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू । तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू ॥ तेरे बाल बड़े घुंगराले, बादल जो
तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू । तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू । तेरी मंद-मंद मुस्कनिया पे, बलिहार संवारे जू ॥ तेरे बाल बड़े घुंगराले, बादल जो
ओ रामजी तेरे भजन ने, बड़ा सुख दीना, तेरे भजन ने, बड़ा सुख दीना, ये दुनिया दीवानी, दो दिन की कहानी, पल दो पल का है जीना, बड़ा सुख दीना,
राम को देख कर श्री जनक नंदिनी, बाग में जा खड़ी की खड़ी रह गयी, राम देखे सिया माँ सिया राम को, चारो अँखिआ लड़ी की लड़ी रह गयी…. थे
दुनिया चले ना श्री राम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना । जब से रामायण पढ़ ली है, एक बात मैंने समझ ली है, रावण मरे ना
रामा रामा रटते रटते, बीती रे उमरिया । रघुकुल नंदन कब आओगे, भिलनी की डगरिया ॥ मैं शबरी भिलनी की जाई, भजन भाव ना जानु रे । राम तेरे दर्शन
आ ही गए रघुनंदन, सजवादो द्वार-द्वार, स्वर्ण कलश रखवादो, बंधवादों बंधन वार… सजी नगरिया है सारी, नाचें गावे नर-नारी, खुशियाँ मनाओ, गाओ री मंगल चार, स्वर्ण कलश रखवादो, बंधवादों बंधन
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो, किस बात की चिंता, शरण में रख दिया जब माथ तो, किस बात की चिंता || किया करते हो तुम दिन रात क्यों, बिन बात
सीता राम जी की प्यारी, राजधानी लागे, राजधानी लागे, मोहे मिठो मिठो, सरयू जी रो पानी लागे ।। तर्ज – मीठे रस से भरयो री राधा। धन्य कौशल्या धन्य कैकई,
दर पर तुम्हारे आया, ठुकराओ या उठा लो, करुणा के सिंधु मालिक, अपनी विरद बचा लो || मीरा या शबरी जैसा, पाया हृदय न मैंने, जो है दिया तुम्हारा, लो
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥ॐ॥ शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥ॐ॥ इति वदति तुलसीदास शंकर