जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी देख तमाशा लकड़ी का
जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा, खेल रचाया लकड़ी का ॥ जिसमे तेरा जनम हुआ, वो पलंग बना था लकड़ी का,
जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी, देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा, खेल रचाया लकड़ी का ॥ जिसमे तेरा जनम हुआ, वो पलंग बना था लकड़ी का,
तन को जोगी सब करे, मन को करे ना कोई, सहजे सब सिद्धि पाइए, जो मन जोगी होय । हम तो जोगी मन ही के, तन के हैं ते और,
पत्ता कहता तरुवर से, सुनो तरुवर मेरी बात, उस घर की ऐसी रीत है, एक आवक एक जाय। यहाँ रहना नहीं देस बिराना है, बिराना है रे, बेगाना है, यहां
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये । चदरिया झीनी रे झीनी, राम नाम रस भीनी, चदरीया झीनी रे झीनी