Kabir Bhajan

कुछ लेना न देना मगन रहना

कुछ लेना न देना मगन रहना। पाँच तत्व का बना पिंजड़ा, जांमै बोले मेरी मैना। गहरी नदिया नाव पुरानी, खेवटिया से मिले रहना। तेरा साईं तेरे मन में बसत है,

दुनिया दो दिन का है मेला, जिसको समझ पड़े अलबेला

दुनिया दो दिन का है मेला, जिसको समझ पड़े अलबेला। जैसी करनी वैसी भरनी, गुरु हो या चेला। सोने चांदी धन रतनों से, खेल आजीवन खेला, चलने की जब घड़ियाँ

मन तोहे किहि बिध मैं समझाऊँ

मन तोहे किहि बिध मैं समझाऊँ। सोना होय तो सुहाग मंगाऊँ बंकनाल रस लाऊँ। ग्यान सबद की फूँक चलाऊँ, पानी कर पिघलाऊँ। घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ, ऊपर जीन कसाऊँ।

महरम होए सो जाने

महरम होए सो जाने साधो ऐसा देस हमारा। वेद कतेब पार नहीं पावत कहन सुनन ते न्यारा। जात वर्ण कुल किरया नाहीं संध्या नेम अचारा। बिन जल बूंद परत जिंहि

माया महाठगिनी हम जानी

माया महाठगिनी हम जानी, निर्गुण फांस लिये डोले बोले मधुरी बाणी। केसव के कमला होइ बैठी, शिव के भवन भवानी, पंडा के मूरत होई बैठी, तीरथ हू में पानी। जोगी

संतन के संग लाग

संतन के संग लाग री तेरी अच्छी बनेगी। होय तेरो बड़ो भाग री तेरी अच्छी बनेगी। काग से तोहे हंस करेंगे, मिट जाये उर का दाग री। मोह निशा में

मन लागो मेरो यार फकीरी में

मन लागो मेरो यार फकीरी में। जो सुख पावो राम भजन में, वो सुख नाहीं अमीरी में। मन लागो मेरो यार फकीरी में। भला बुरा सब का सुन लीजै, कर

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले

मन मस्त हुआ तब क्यों बोले। हल्की थी जब चढ़ी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोले। मन मस्त हुआ तब क्यों बोले। हीरा पायो गांठ गठायो, बार बार वाको क्यों