मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊं रे | म्हारे सतगुरु आंगण आया, मैं वारी जाऊं रे | म्हारा सतगुरु आंगण आया, मैं गंगा गोमती नहाया, रे मारी निर्मल हो गयी…
मैं वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊं रे | म्हारे सतगुरु आंगण आया, मैं वारी जाऊं रे | म्हारा सतगुरु आंगण आया, मैं गंगा गोमती नहाया, रे मारी निर्मल हो गयी…
मत कर माया को अहंकार, मत कर काया को अभिमान। काया गार से काची, जैसे ओस का मोती। झोंका पवन का लग जाये, झपका पवन का लग जाये, काया धूल
बिना चंदा रे, बिना भाण, सूरज बिन होया उजियारा रे परलोका मत जाव, हेली, निरख ले यहीं उनियारो है गूंगो गावे है बेराग, बेहरो रे सुनवा ने लाग्यो है पांगलियो
एकला मत छोड़जो, बंजारा रे बंजारा रे परदेस का है मामला, खोटा हो प्यारा रे || दूर देस का मामला, टेढ़ा हो प्यारा रे… अपना साहब जी ने बंगलो बनवायो
सकल हंस में राम विराजे, राम बिना कोई धाम नहीं | सब भरमंड में ज्योत का वासा, राम को सुमिरो दूजा नहीं || तीन गुण पर तेज हमारा, पांच तत्व
1. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। सब अँधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिं॥ Jab mai tha tab Hari nahi, ab Hari hai mai
Here are 50 dohas (couplets) by Kabir, a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings influenced the Bhakti movement. These dohas are rich in spiritual and philosophical wisdom. 1.
मत बाँधो गठरिया अपयश कै, मत बाँधो गठरिया अपयश कै । धरम छोड़ि अधरम को धायो, नैया डुबायो जनम भर कै । मत बाँधो गठरिया अपयश कै… भाई बन्धु परिवार
हरि बिन कौन सहाई मन का। मात पिता भाई सुत बनिता, हित लागो सब फन का। हरि बिन कौन सहाई मन का। आगे को कुछ तुलहा बांधो, क्या मरवासा मन
कोई जानेगा जाननहारा, साधो हरि बिन जग अंधियारा। या घट भीतर सोना चांदी, यही में लगा बज़ारा, या घट भीतर हीरा मोती, यही में परखनहारा। या घट भीतर काशी-मथुरा, यही