समझी लेवो रे मना भाई अंत नी होय कोई आपणा
समझी लेवो रे मना भाई , अंत नी होय कोई आपणा । समझी लेवो रे मना भाई , अंत नी होय कोई आपणा । आप निरंजन निरगुणा, हारे सिरगुण तट
समझी लेवो रे मना भाई , अंत नी होय कोई आपणा । समझी लेवो रे मना भाई , अंत नी होय कोई आपणा । आप निरंजन निरगुणा, हारे सिरगुण तट
गुरु सिंगाजी की सजी रे बारात कुटुम सब भेलों हुयों बाबा ओहम सोहम रथ जोतिया, रथ गया हे बेकुंठ धाम, कुटुम सब भेलों हुयों, गुरु सिंगाजी की सजी रे बारात.
महाराज सिंगाजी संत महाराज सिंगाजी संत, ज्ञान की बाजी नौबत महाराज सिंगाजी संत. ब्रह्मगिर को हुआ आचरज, कहो कोन भया रे सामरथ, मनरंग को साकित किया, जेने बता दिया रे
दुनिया दो दिन का है मेला, जिसको समझ पड़े अलबेला। जैसी करनी वैसी भरनी, गुरु हो या चेला। सोने चांदी धन रतनों से, खेल आजीवन खेला, चलने की जब घड़ियाँ
मन तोहे किहि बिध मैं समझाऊँ। सोना होय तो सुहाग मंगाऊँ बंकनाल रस लाऊँ। ग्यान सबद की फूँक चलाऊँ, पानी कर पिघलाऊँ। घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ, ऊपर जीन कसाऊँ।
महरम होए सो जाने साधो ऐसा देस हमारा। वेद कतेब पार नहीं पावत कहन सुनन ते न्यारा। जात वर्ण कुल किरया नाहीं संध्या नेम अचारा। बिन जल बूंद परत जिंहि
माया महाठगिनी हम जानी, निर्गुण फांस लिये डोले बोले मधुरी बाणी। केसव के कमला होइ बैठी, शिव के भवन भवानी, पंडा के मूरत होई बैठी, तीरथ हू में पानी। जोगी
संतन के संग लाग री तेरी अच्छी बनेगी। होय तेरो बड़ो भाग री तेरी अच्छी बनेगी। काग से तोहे हंस करेंगे, मिट जाये उर का दाग री। मोह निशा में
श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ। कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ। श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे। प्यारी बंशी मेरो मन मोहे।
आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ जाके बल से गिरिवर कांपे।रोग दोष जाके निकट न झांके॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई।सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥ दे बीरा रघुनाथ